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हल्दी की खेती का बिजनस आइडिया

पीली हल्दी की जगह काली हल्दी की खेती कर किसान कम लागत में अधिक आय कर रहा है

पीली हल्दी की जगह काली हल्दी की खेती कर किसान कम लागत में अधिक आय कर रहा है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि काली हल्दी की खेती करने पर पानी की खपत कम होती है। यदि आप एक एकड़ में काली हल्दी की खेती करते हैं, तो आपको 50 से 60 क्विंटल तक पैदावार मिलेगा। 

साथ ही, एक एकड़ से 10 से 12 क्विंटल तक सूखी हल्दी का उत्पादन होगा। ऐसे में काली हल्दी की खेती करने पर काफी अच्छी खासी आमदनी होती है। लोगों का मानना है, कि हल्दी केवल पीले रंग की ही होती है। 

परंतु, इस तरह की कोई बात नहीं है। दरअसल, हल्दी काले रंग की भी होती है। विशेष बात यह है, कि काली हल्दी का भाव भी पीली हल्दी की तुलना में ज्यादा होता है। इसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक औषधियां बनाने में किया जाता है। 

इसमें पीली हल्दी की तुलना में विटामिन्स और मिनिरल्स भी ज्यादा पाए जाते हैं। यही कारण है, कि अब बिहार में एक किसान ने इसकी खेती भी चालू कर दी है। इससे किसान की काफी मोटी आमदनी हो रही है।

काली हल्दी की खेती करने वाला किसान कमलेश

जानकारी के अनुसार, काली हल्दी की खेती करने वाले किसान का नाम कमलेश चौबे है। वे पूर्वी चम्पारण के नरकटियागंज प्रखंड स्थित मुशहरवा गांव के मूल निवासी हैं। 

उन्होंने अभी एक कट्ठे भूमि पर काली हल्दी की खेती चालू की है। उन्होंंने एक कट्ठे जमीन में 25 किलो काली हल्दी की बुवाई की थी, जिससे लगभग डेढ़ क्विंटल हल्दी का उत्पादन हुआ है। इससे उन्हें काफी अच्छी आमदनी हो रही है। 

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किसान हल्दी विक्रय से कितना कमा सकते हैं

विशेष बात यह है, कि कमलेश ने काली हल्दी का उत्पादन करने के लिए नागालैंड से इसके बीज इंपोर्ट किए थे। बतादें, कि एक किलो बीज 500 रुपये में आए थे। ऐसी स्थिति में 25 किलो बीज खरीदने के लिए उन्हें साढ़े 12 हजार रुपये का खर्चा करना पड़ा। 

वर्तमान में बाजार के अंदर काली हल्दी की कीमत 500 से 5000 रुपये किलो के मध्य है। यदि कमलेश 1000 रुपये किलो भी काली हल्दी बेचते हैं, तो 150 किलो हल्दी विक्रय के उपरांत उन्हें डेढ़ लाख रुपये की आमदनी होगी।

काली हल्दी में कितने तत्व विघमान होते हैं

कृषि वैज्ञानिक अभिक पात्रा के अनुसार काली हल्दी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होती है। इससे बहुत सारी औषधीय दवाइयां निर्मित की जाती हैं। पीली हल्दी की अपेक्षा में इसकी कीमत बहुत गुना अधिक होती है। 

वर्तमान में उत्तराखंड के किसान भी इसकी बड़े पैमाने पर खेती कर रहे हैं। काली हल्दी में एंथोसायनिन ज्यादा मात्रा में विघमान होता है। इस वजह से यह गहरे बैंगनी रंग की दिखती है। 

साथ ही, काली हल्दी में एंटी अस्थमा, एंटीऑक्सिडेंट, एंटीफंगल, एंटी- कॉन्वेलसेंट, एनाल्जेसिक, एंटीबैक्टीरियल और एंटी-अल्सर जैसे विशेष गुण मौजूद होते हैं।

गर्मियों में हल्दी की खेती कर किसान शानदार उत्पादन उठा सकते हैं

गर्मियों में हल्दी की खेती कर किसान शानदार उत्पादन उठा सकते हैं

रबी की फसलों की कटाई का समय आ गया है। अब कुछ दिनों के बाद हल्दी उत्पादक किसान हल्दी की खेती के लिए बुवाई शुरू करेंगे। संपूर्ण भारत के करीब हर घर में सामान्यतः हल्दी का उपयोग किया जाता है। यह एक काफी ज्यादा महत्वपूर्ण मामला है। भारत के अंदर इसकी खेती भी बड़े पैमाने पर की जाती है। 

बहुत सारे राज्यों में इसका उत्पादन किया जाता है। हल्दी की खेती करने के दौरान किसान भाइयों को कुछ विशेष बातों का खास ध्यान रखना होता है। ताकि उनको हल्दी उत्पादन से तगड़ा मुनाफा प्राप्त हो एवं उन्हें बेहतरीन उपज हांसिल हो सके।

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि हल्दी की खेती के लिए रेतीली दोमट मृदा या मटियार दोमट मृदा काफी अच्छी होती है। हल्दी की बिजाई का समय भिन्न-भिन्न किस्मों के आधार पर 15 मई से लेकर 30 जून के मध्य होता है। 

वहीं, हल्दी की बुवाई के लिए कतार से कतार का फासला 30-40 सेमी और पौध से पौध की दूरी 20 सेमी रखनी चाहिए। हल्दी की बुवाई के लिए 6 क्विंटल प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती है।

हल्दी की फसल कितने समय में तैयार होती है ?

हल्दी की खेती के लिए खेत में जल निकासी की बेहतरीन व्यवस्था होनी चाहिए। हल्दी की फसल 8 से 10 माह के अंदर तैयार हो जाती है। सामन्यतः फसल की कटाई जनवरी से मार्च के दौरान की जाती है। फसल के परिपक्व होने पर पत्तियां सूख जाती हैं और हल्के भूरे से पीले रंग में बदल जाती हैं। 

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हल्दी की खेती काफी सुगमता से की जा सकती है और इसे छाया में भी आसानी से उगाया जा सकता है। किसानों को इसकी खेती करते समय नियमित तौर पर निराई-गुड़ाई करनी चाहिए, जिससे खरपतवारों की वृद्धि रुकती है और फसल को पोषक तत्वों की प्राप्ति होती है। 

हल्दी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु  

दरअसल, हल्दी गर्म एवं उमस भरी जलवायु में बेहतरीन ढंग से उगती है। इसके लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है। हल्दी के लिए अच्छी जल निकासी वाली, दोमट अथवा बलुई दोमट मृदा अच्छी होती है। 

मिट्टी का पीएच 6.5 से 8.5 के मध्य होना चाहिए। हल्दी की अच्छी पैदावार के लिए खाद का उचित इस्तेमाल करना आवश्यक है। गोबर की खाद, नीम की खली और यूरिया का इस्तेमाल काफी लाभदायक होता है। कटाई की बात की जाए तो हल्दी की फसल 9-10 माह के अंदर पककर तैयार हो जाती है। कटाई होने के बाद इसे धूप में सुखाया जाता है। 

हल्दी को तैयार होने में कितना समय लगता है ? 

हल्दी की बुवाई जून-जुलाई महीने के दौरान की जाती है। बुवाई के लिए स्वस्थ और रोग मुक्त कंदों का चुनाव करना बेहद आवश्यक है। सिंचाई की बात की जाए तो इसे नियमित तौर पर सिंचाई की जरूरत होती है। 

किसान भाइयों को इसकी खेती करने के दौरान नियमित रूप से निराई-गुड़ाई करनी चाहिए, जिससे खरपतवारों का खतरा समाप्त एवं फसल को पोषक तत्वों की प्राप्ति होती है। फसल कटाई की बात की जाए तो हल्दी की फसल 9-10 महीने के अंदर पककर तैयार हो जाती है।

हल्दी की बेहतरीन किस्में इस प्रकार हैं ?

समयावधि के आधार पर इसकी किस्मों को तीन भागों में विभाजित की गई हैं 

  1. शीघ्र काल में तैयार होने वाली ‘कस्तुरी’ वर्ग की किस्में - रसोई में उपयोगी, 7 महीने में फसल तैयार, शानदार उपज। जैसे-कस्तुरी पसुंतु।
  2. मध्यम समय में तैयार होने वाली केसरी वर्ग की किस्में - 8 महीने में तैयार, अच्छी उपज, अच्छे गुणों वाले कंद। जैसे-केसरी, अम्रुथापानी, कोठापेटा।
  3. दीर्घ काल में तैयार होने वाली किस्में - 9 महीने में तैयार, सबसे अधिक उपज, गुणों में सर्वेश्रेष्ठ। जैसे दुग्गीराला, तेकुरपेट, मिदकुर, अरमुर। व्यवसायिक स्तर पर दुग्गीराला व तेकुपेट की खेती इनकी उच्च गुणवत्ता की वजह से की जाती है। इसके अतिरिक्त सुगंधम, सुदर्शना, रशिम, मेघा हल्दी-1, मीठापुर और राजेन्द्र सोनिया हल्दी की अन्य किस्में है। 

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जैविक ढंग से खेती करना सर्वोत्तम विकल्प है 

विशेषज्ञों की मानें तो हल्दी की खेती के लिए जैविक विधि का इस्तेमाल करना बेहद आवश्यक है। इसकी फसल को मिश्रित खेती के रूप में भी उगाया जा सकता है। हल्दी की उन्नत किस्मों की खेती करके किसान भाई अधिक उपज हांसिल कर सकते हैं।